अस्सलाम अलैकुम दोस्तों हम सब इन्सान है और किसी न किसी वजह से नमाज़ छुट जाती है और वक़्त भी खत्म हो जाता है उसके बाद Qaza Namaz पढ़ते है.
लेकिन यहाँ पर बहुत से लोगो को मालूम ही नहीं है की Qaza Namaz Padhne ka Tarika क्या है उसके साथ क़ज़ा नमाज़ की नियत कैसे करते है.
अगर किसी को यह सब जानकारी भी होता है तो उसे Qaza Namaz ki Rakat कितनी होती है ये मालूम नहीं होता है और भी बहुत ऐसे सारे सवाल होते है जो लोगो को पता ही नहीं होता है.
इसीलिए आज की पोस्ट में Qaza Namaz से मुतालिक (Related) जितने भी सवाल होते है उन सभी का जवाब यहाँ पर मिलने वाला है आपको सिर्फ ये पोस्ट शुरू से आखिर तक पढ़ना है.
Qaza Namaz kya Hai?
किसी भी इबादत को उसके वक़्त पर पढ़ने को अदा कहते है और उसका वक़्त खत्म हो जाने पर उसको क़ज़ा कहते है.
अल्लाह ता’अला ने जिस नमाज़ को टाइम पर पढ़ने का हुक्म दिया है और वह नमाज़ समय गुजर जाने पर उसको पढ़ना क़ज़ा कहते है.
मसलन फजर की नमाज़ का एक फिक्स वक़्त होता है वह वक़्त खत्म हो जाने पर फज़र की नमाज़ पढ़ने पर वह क़ज़ा हो जाती है.
हमारी नमाज़ किसी न किसी वजह से छुट जाती है जैसे सोते हुए या किसी कम से बाज़ार या सफ़र में हो तो ऐसी सूरत में नमाज़ क़ज़ा हो जाती है लेकिन जानबूझ कर क़ज़ा करना गुनाह है.
बालिग होने की उम्र क्या है?
इस्लाम में मर्द और औरत का बालिग होने का उम्र अलग अलग होता है शरियत के हिसाब से मर्द का बालिग होने का उम्र 12 साल की उम्र से 15 साल की उम्र तक होता है.
औरत का बालिग होने का उम्र 10 साल की उम्र से 15 साल की उम्र तक होता है इसके बाद मर्द और औरत में बालिग होने की निसानिया भी नहीं दिखती फिर भी वह बालिग है.
बालिग हो जाने के बाद माँ-बाप को चाहिए की अपने औलाद को नमाज़ रोज़ा सिखाए यानि इस्लाम में जो बालिग होने के बाद जो अमल फ़र्ज़ हो जाता है उसको सिखाया जाए.
बालिग होने के बाद मर्द और औरत नमाज़ रोज़ा या कोई भी फ़र्ज़ अमल जो उसपर फ़र्ज़ किये गए है वह जानबूझ कर छोड़ देता है तो वह गुनाह के हकदार होता है.
Qaza Namaz ka Waqt kya Hai
जब आप सभी लोगो को क़ज़ा नमाज़ पढ़ते है तो आपके मन में सवाल होता है की फज़र से लेकर ईशा तक की नमाज़ के क़ज़ा का वक़्त क्या है.
इसका सिंपल जवाब है की किसी भी नमाज़ के लिए कोई वक़्त मुकरर नहीं किया गया है जब आपको मन मुताबिक समय मिले यह नमाज़ पढ़ लेने चाहिए. लेकिन तिन ऐसे वक़्त होते है जिनमे नहीं पढ़ना चाहिए.
- तुलूअ आफ़्ताब (यानी फ़ज्र नमाज़ के बाद से सूरज निकलने तक)
- जवाल के वक़्त (दिन में 11:30 बजे से 12:30 बजे के बीच का वक़्त)
- गुरूब आफ़्ताब (यानि सूरज डूबते वक़्त यानि असर की नमाज़ खत्म होने के बाद और मग़रिब की नमाज़ शुरू होने से पहले तक)
आपको एक बात का खास ख्याल रखना होगा की अगर आपकी आज की नमाज़ क़ज़ा हो गयी है तो आज ही उसका क़ज़ा पढ़ लेना चाहिए.
मसलन किसी शख्स से फजर की नमाज़ क़ज़ा हो गयी तो उसके चाहिए की ईशा की नमाज़ तक इसकी क़ज़ा पढ़ ले.
लेकिन अगर आपकी बालिग होने की उम्र से नमाज़ कज़ा हो गयी है और उसका पढ़ना चाहते है तो उसको कभी भी पढ़ सकते है.
क़ज़ा नमाज़ की अदायगी जल्द से जल्द कर लेना चाहिए क्युकी हम लोगो को मालूम नहीं है की अल्लाह ता’अला से कब बुलावा आ जाए.
Qaza Namaz ki Rakat Kitni Hoti Hai
आपको सबसे पहले ये समझना होगा की क़ज़ा सिर्फ फ़र्ज़ और वाजिब नमाज़ की होती है सुन्नत और नफिल नमाज़ की क़ज़ा नहीं होती है.
मसलन किसी सख्स से जोहर की नमाज़ छुट गयी है तो जब वह जोहर की क़ज़ा पढ़ने लगे तो उसको सिर्फ 4 रकात फ़र्ज़ ही पढ़ना चाहिए.
Fajar ki Qaza Namaz ki Rakat
फजर की क़ज़ा नमाज़ सिर्फ 2 रकात होती है सुन्नत नहीं मसलन किसी सख्स से फजर नमाज़ क़ज़ा हो जाए और सूरज निकलने के बाद पढ़ना चाहता है तो सिर्फ 2 रकात फ़र्ज़ ही पढ़े.
Johar ki Qaza Namaz ki Rakat
जोहर की क़ज़ा नमाज़ सिर्फ 4 रकात होती है सुन्नत और नफिल पढ़ना जरुरी नहीं है. मसलन किसी भी इन्सान से जोहर नमाज़ छुट जाए और वह असर पढ़ने के बाद पढ़ना चाहता है तो उसको चाहिए की सिर्फ 4 फ़र्ज़ पढ़े.
Asar ki Qaza Namaz ki Rakat
असर की क़ज़ा नमाज़ में भी सिर्फ 4 रकात फ़र्ज़ होती है सुन्नत नहीं यानि कोई भी आदमी से असर की नमाज़ छुट जाए और असर का वक़्त खत्म हो जाए फिर मगरिब के बाद पढ़ना चाहते है सिर्फ 4 रकात फ़र्ज़ ही पढ़े.
Magrib ki Qaza Namaz ki Rakat
किसी भी सख्स से मगरिब नमाज़ किसी वजह से छुट जाए तो उसको चाहिए की वक़्त रहते हुए अदा कर ले लेकिन वक़्त गुजर जाने के बाद पढ़ना चाहते है.
तो ईशा के बाद सिर्फ 3 रकात फ़र्ज़ पढ़ लेते है तो आपको मगरिब नमाज़ अदा हो जाएगी.
Isha ki Qaza Namaz ki Rakat
अगर किसी सख्स से ईशा की नमाज़ जमात के साथ छुट जाए तो उसको चाहिए की वक़्त रहते हुए पढ़ लेना चाहिए लेकिन वक़्त गुजर जाने के बाद आपको 4 रकात फ़र्ज़ और तिन रकात वित्र की नमाज़ पढ़ना चाहिए.
इस हिसाब से पांच वक़्त की नमाज़ क़ज़ा हो जाए तो आपको सिर्फ 20 रकात ही पढ़ना होता है:
- 2 फजर फ़ज्र के
- 4 फ़र्ज़ जो़हर के
- 4 फ़र्ज़ असर के
- 3 फ़र्ज़ मग़रिब के
- 4 फ़र्ज़ इशा के
- 3 वित्र ईशा के
Qaza Namaz ki Niyat Kaise Bane
क़ज़ा नमाज़ की नियत और पांचो वक़्त की Namaz ki Niyat के तरीके में कोई अंतर नहीं है आपको सिर्फ एक लफ्ज़ नियत जोड़ना होगा जो निचे बताया गया है.
Fajar ki Qaza Namaz ki Niyat
“नियत की मैंने 2 रकात नमाज़ क़ज़ा फजर फ़र्ज़ की अल्लाह ता’अला के लिए मुंह मेरा काबा शरीफ की तरह अल्लाहु अकबर”
Johar ki Qaza Namaz ki Niyat
“नियत की मैंने 4 रकात नमाज़ क़ज़ा जोहर फ़र्ज़ की अल्लाह ता’अला के लिए मुंह मेरा काबा शरीफ की तरह अल्लाहु अकबर”
Asar ki Qaza Namaz ki Niyat
“नियत की मैंने 4 रकात नमाज़ क़ज़ा असर फ़र्ज़ की अल्लाह ता’अला के लिए मुंह मेरा काबा शरीफ की तरह अल्लाहु अकबर”
Magrib ki Qaza Namaz ki Niyat
“नियत की मैंने 3 रकात नमाज़ क़ज़ा मगरिब फ़र्ज़ की अल्लाह ता’अला के लिए मुंह मेरा काबा शरीफ की तरह अल्लाहु अकबर”
Isha ki Qaza Namaz ki Niyat
“नियत की मैंने 4 रकात नमाज़ क़ज़ा ईशा फ़र्ज़ की अल्लाह ता’अला के लिए मुंह मेरा काबा शरीफ की तरह अल्लाहु अकबर”
“नियत की मैंने 3 रकात नमाज़ क़ज़ा बाद ईशा वित्र की अल्लाह ता’अला के लिए मुंह मेरा काबा शरीफ की तरह अल्लाहु अकबर”
Qaza Namaz Padhne ka Tarika

Qaza Namaz पढ़ने के लिए आपको मालूम होना चाहिए की आप किस वक़्त की क़ज़ा पढ़ रहे है हम मान के चल रहे है आपको फज़र की नमाज़ क़ज़ा हो गयी तो अदा कैसे करेंगे.
हमने आपको ऊपर बता दिया हूँ की किसी भी नमाज़ की क़ज़ा सिर्फ व सिर्फ फ़र्ज़ की होती है सुन्नत और नफिल की नहीं.
इसी तरह फज़र क़ज़ा हो गयी है तो आपको 2 रकात फजर की नमाज़ पढ़ना चाहिए पढ़ने के लिए सबसे पहले आपको बा वजू होना है यानि वजू करले.
फिर नियत करे जिस वक़्त की नमाज़ पढ़ रहे है जो ऊपर अच्छी तरह से बता दिया हूँ नियत करने के बाद दोनों हाथों को कानो तक उठाय और अल्लाहु अकबर कहते हुए हाथ को बांध ले.
फिर सना पढ़े (सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबारका इस्मुका व त’आला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका) इसके बाद आउज़ बिल्लाहे मिन्नस सैतानिर्रजिम और बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम पढ़े.
इसके बाद सुरह फातिहा और कोई सूरत मिलाए और अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकू में जाए और कम से कम तिन मर्तबा सुबहाना रब्बियल अज़ीम कहे और समिल्लाहु लिमन हमीदा कहते हुए खड़े हो जाए जब अच्छी तरह से खड़े हो जाए तो रब्बना लकल हम्द कहे.
फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए सजदा में जाए और दोनों सजदा में कम से कम तिन मर्तबा सुब्हान रब्बि यल आला और दूसरी रकात के लिए खड़ा हो जाए.
दूसरी रकात में सना नहीं पढ़ना है सिर्फ अलहम्दो शरीफ और सूरत मिलाए फिर रुकू सजदा करे जैसे बाकि नमाजो में करते है.
फिर सजदे के बाद अपने दोनों पंजो पर बैठ जाए फिर तशाहुद पढ़े यानि अत्तःहियत, दरुदे इब्राहीम, दुआ ए मशुरा पढ़ कर दोनों तरफ सलाम फेर दे.
इस तरह से आपकी फज़र की क़ज़ा नमाज़ अदा हो जाएगी याद रखे इसी तरीके से बाकि क़ज़ा नमाज़ को पढ़ सकते है.
अगर आपको फजर अच्छी तरह से पढ़ना चाहते है तो आपको मेरी पोस्ट Fajar ki Namaz ka Tarika पढ़ना चाहिए.
Qaza e Umri ki Namaz Kaise Padhe
किसी सख्स ने पिछली जिंतने भी नमाज़ क़ज़ा किए है चाहे 10 साल हो या 20 या 80 साल सभी का तरीका एक ही क़ज़ा इ उमरी पढ़ना इसके लिए आपको Qaza e Umri ki Namaz ka Tarika सीखना चाहिए.
Qaza Namaz के मुताल्लिक सवाल जवाब
क़ज़ा नमाज़ का तरीका, नियत, रकात इसके अलावा जितने सवाल है उसको यहाँ पर बताने जा रहा हूँ इसके अलावा कोई ऐसा सवाल है जो यहाँ पर नहीं बताया गया है तो निचे कमेंट करे.
Kya Asar ke baad Qaza Namaz Padh Sakte Hain
हाँ बिलकुल, असर की नमाज़ के बाद क़ज़ा नमाज़ पढ़ सकते है.
Fajar ki Qaza Namaz kab tak padh sakte hain
इसका जवाब कोई फिक्स नहीं है क्युकी मान ले की आज का फजर क़ज़ा हो गया तो जब आपको वक़्त मिल इसकी क़ज़ा पढ़ सकते है.
अदा और क़ज़ा नमाज़ में क्या फ़र्क है?
जो नमाज़ अल्लाह ता’अला ने जिस वक़्त पर पढ़ने का हुक्म दिया है उसी वक़्त पर पढ़ने का नाम अदा है और वह वक़्त गुजर जाने के बाद पढ़ने पर उसको क़ज़ा कहते है.
क्या सुन्नत और नफिल नमाज़ की क़ज़ा होती है?
जी नहीं, क़ज़ा सिर्फ फ़र्ज़ नमाज़ की पढ़ी जाती है सुन्नत और नफिल की नहीं क्युकी फ़र्ज़ और वाजिब का ही क़ज़ा होती है.
क्या क़ज़ा की नमाज़ छुप कर पढ़ना चाहिए?
क़ज़ा की नमाज़ छुप कर पढ़ना चाहिए, क़ज़ा की नमाज़ का जिक्र लोगों पर (या घर वालों या करीबी दोस्तों पर भी) इसका इज़्हार न कीजिए मसलन किसी से ये मत कहे कि आज मेरी फ़ज्र क़ज़ा हो गई क्यूंकि नमाज़ क़ज़ा करना गुनाह हैं और गुनाह का इज़्हार करना भी मकरूह़े तह़रीमी व गुनाह हैं!
आज आपने क्या सिखा
मुझे उम्मीद है की आपको Qaza Namaz Padhne ka Tarika और सलीका मालूम हो गया है जिसमे सबसे पहले आपने समझ की आखिर क़ज़ा होती क्या है.
इसके बाद क़ज़ा नमाज़ की वक़्त और रकात के बारे में समझा की क़ज़ा का वक़्त कोई फिक्स नहीं है जब आपको समय मिले तब पढ़ सकते है लेकिन कुछ ऐसे टाइम है जिनमे नहीं पढ़ा चाहिए तो ऊपर अच्छी तरह से बताया गया है.
और फिर जाना की क़ज़ा नमाज़ की नियत भी अलग होता है बाकि नमाजो की तरह इसके बाद बहुत सारे क़ज़ा नमाज़ से रिलेटेड सवाल और जवाब सिखा.
आप निचे कमेंट करे की आपको ये पोस्ट कैसा लगा इसके अलावा आप इस पोस्ट को अपने फेसबुक व्हात्सप्प पर शेयर करे.
Kya qaza namaz masjid me pdna jaruri hai ya fir Ghar pe bhi pd skte hain
Ghar ya Masjid Dono me padh sakte hai
Qaza e umri namajo ka tarika bataye
Kisi ki johar asar magrib tino namaj kaja hojae to kya tino namaj Isha me par sakte hai
Agar asar ki namaz ka wakt 5 baje ka he or me 5 .10 ko phocha yani jaamat ho gai to kya me Faraz hi padu ke 4 suunat or 4 Faraz dono padhu
Good information to me