Bimar ki Namaz ka Tarika | कुर्सी पर नमाज़

Bimar ki Namaz ka Tarika

क्या आप बीमार है और Bimar ki Namaz ka Tarika सिखने की तलाश में है तो आप बिलकुल सही जगह पर आए है यहाँ पर आपको लेट कर नमाज़ कैसे पढ़े? कुर्सी पर नमाज़ कैसे पढ़े सब कुछ सीखाया जायेगा.

इस्लाम में किसी भी चीज़ के लिए सख्ती नहीं है लेकिन नमाज़ एक वाहिद ऐसा अमल है जिसको पढ़ना हर बालिग मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है चाहे आप बीमार ही क्यों ना हो आपको पढ़ना ही है.

बीमारी की मुक्तलिफ़ किस्मे होती है मसलन किसी सख्स को खड़े हो कर नमाज़ पढ़ने में परेशानी होता है तो उसे चाहिए की वह बैठ कर पढ़े.

इसी तरह किसी सख्स को बैठ कर पढ़ने में दिक्कत होती है तो उस सख्स को चाहिए की कुर्सी पर बैठ कर पढ़े या बिस्तर पर लेट कर पढ़े लेकिन आपको पढ़ना होगा.

इसी तरह कोई सख्स ना खड़ा हो सकता है, ना बैठ सकता है, ना कुर्सी पर बैठ सकता है तो उसे चाहिए की सिर्फ जुबान की हरकत से पढ़े. चलिए जानते है Bimar ki Namaz कैसे पढ़ते है.

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Bimar ki Namaz Padhne ka Tarika

जो सख्स बीमार की वजह से खड़ा ना हो सकता हो वह बैठ कर नमाज़ पढ़े और बैठे बैठे रुकू करे यानि आगे खूब झुक कर सुबहान रब्बील अज़ीम और फिर सीधा हो जाए और फिर जैसे सिजदा किया था वैसे सजदा करे.

अगर बैठ कर भी नमाज़ नहीं पढ़ सकता तो चित लेट कर पढ़े- इस तरह लेते की पाओ किबला की तरफ हो और घुटने खड़े रहे और सर के निचे तकिया वगैरा कुछ रख ले ताके सर ऊँचा हो के मुंह किबला के सामने हो जाए और रुकू और सिजदा इशारा से करे यानि सर को जितना झुका सकता है उतना तो सिजदा के लिए झुकाए.

और उससे कुछ कम रुकू के लिए झुकाए उसी तरह दाहिने या बाए करवट पर भी किबला को मुंह करके पढ़ सकता है.

बीमारी में नमाज़ पढ़ने के मुताल्लिक़ ज़रूरी मसाइल

  • जो शख़्स बीमारी की वजह से खड़े होकर नमाज़ पढ़ने पर क़ादिर नहीं कि खड़े होकर पढ़ने से मर्ज़ मे नुक़सान या तकलीफ़ होगी या मर्ज़ बढ़ जाएगा या देर में अच्छा होगा या चक्कर आता है या खड़े होकर पढ़ने से पैशाब का क़तरा आएगा या बहुत तेज़ दर्द नाक़ाबिले बर्दाश्त हो जाएगा तो इन सब सूरतों में बैठ कर रुकू व सुजूद के साथ नमाज़ पढ़े।
  • अगर अपने आप बैठ भी नहीं सकता लेकिन कोई दूसरा शख़्स वहाँ है कि बैठा दे तो बैठकर पढ़ना ज़रूरी है और अगर बैठा नहीं रह सकता तो तकिया या दीवार या किसी शख़्स पर टेक लगा कर पढ़े। यह भी न हो सके तो लेट कर पढ़े और बैठ कर पढ़ना मुमकिन हो तो लेट कर नमाज़ नहीं होगी।
  • बैठ कर पढ़ने में किसी ख़ास तौर पर बैठना ज़रूरी नहीं बल्कि मरीज़ पर जिस तरह आसानी हो उस तरह बैठे। अगर आसानी हो तो दो ज़ानू बैठना (जैसे नमाज़ में बैठते हैं) बेहतर है।
  • खड़ा हो सकता है मगर रुकू व सुजूद नहीं कर सकता या सिर्फ़ सजदा नहीं कर सकता तो बैठ कर इशारे से पढ़ सकता है बल्कि यही बेहतर है और इस सूरत में यह भी कर सकता है कि खड़े होकर पढ़े और रुकू के लिए इशारा करे या रुकू कर सकता हो तो रुकू करे फिर बैठ कर सजदे के लिए इशारा करे।
  • इशारे करने में सजदे और रुकू के इशारे में फ़र्क़ ज़रूरी है यानि सजदे में रुकू के मुक़ाबले ज़्यादा झुके मगर यह ज़रूरी नहीं कि सिर को बिल्कुल ज़मीन से क़रीब कर दे।
  • सजदे के लिए तकिया वग़ैरा कोई चीज़ माथे तक उठा कर उस पर सजदा करना मकरूह-ए-तहरीमी है चाहे ख़ुद उसी ने वह चीज़ उठाई हो या दूसरे ने।
  • अगर कोई ऊँची चीज़ ज़मीन पर रखी हुई है उस पर सजदा किया और रुकू के लिए सिर्फ़ इशारा नही किया बल्कि पीठ भी झुकाई तो सही है बशर्ते कि सजदे के शराइत पाये जायें जैसे उस चीज़ का सख़्त होना जिस पर सजदा किया कि इस क़द्र पेशानी दब गई हो कि फिर दबाने से न दबे और उसकी ऊँचाई बारह उंगल से ज़्यादा न हो।
  • जो शख़्स जब किसी ऊँची जगह पर रुकू व सुजूद कर सकता है और क़ियाम करने के क़ाबिल है तो इस पर क़ियाम फ़र्ज़ है या नमाज़ पढ़ने के बीच में क़ियाम पर क़ादिर हो गया तो जो बाक़ी है उसे खड़े होकर पढ़ना फ़र्ज़ है।
  • जो शख़्स ज़मीन पर सजदा नहीं कर सकता मगर ऊपर दी हुई शर्तों के साथ कोई चीज़ ज़मीन पर रख कर सजदा कर सकता है तो उस पर फ़र्ज़ है कि उसी तरह सजदा करे इशारा जाइज़ नहीं। अगर वह चीज़ जिस पर सजदा किया गया ऐसी नहीं कि सजदे की शर्तें पूरी हो सकें तो सजदे के लिए इशारा करें।
  • पेशानी में ज़ख़्म है कि सजदे के लिए माथा नहीं लगा सकता तो नाक पर सजदा करे और ऐसा न किया बल्कि इशारा किया तो नमाज़ न हुई।
  • अगर मरीज़ बैठ नहीं सकता तो लेट कर इशारे से पढ़े चाहे दाहिनी या बायीं करवट पर लेट कर क़िबले को मुँह करे या लेट कर क़िबले को पाँव किए हो मगर पाँव न फैलाए कि क़िबले को पाँव फैलाना मकरूह है बल्कि घुटने खड़े रखे और सिर के नीचे तकिया वग़ैरा रख कर ऊँचा कर ले कि मुँह क़िबले को हो जाए और इस तरह यानि सीधे लेट कर पढ़ना अफ़ज़ल है।
  • अगर सिर से इशारा भी न कर सके तो नमाज़ साक़ित है (यानि इस हालत में नमाज़ का हुक्म नहीं ) इसकी ज़रूरत नहीं कि आँख या भौं या दिल के इशारे से पढ़े फिर अगर छह वक़्त इसी हालत में गुज़र गये तो उनकी क़ज़ा भी साक़ित, फ़िदया की भी ज़रुरत नहीं और ना सेहत होने के बाद इन नमाज़ों की क़ज़ा लाज़िम है चाहे इतनी सेहत हो कि सिर के इशारे से पढ़ सके।
  • मरीज़ अगर क़िबले की तरफ़ अपने आप मुँह नहीं कर सकता है न दूसरे के ज़रिए से तो वैसे ही पढ़ ले और सेहत के बाद इस नमाज़ को दोहराने की ज़रूरत नहीं और अगर कोई शख़्स मौजूद है कि इसके कहने से क़िबला-रू कर देगा मगर इसने उससे न कहा तो न हुई। इशारे से जो नमाज़ें पढ़ी हैं सेहत के बाद उनका लौटाना भी ज़रूरी नहीं। अगर ज़बान बन्द हो गई और गूंगे की तरह नमाज़ पढ़ी फिर ज़बान खुल गई तो इन नमाज़ों को भी दोहराने की ज़रूरत नहीं।
  • तन्दरुस्त शख़्स नमाज़ पढ़ रहा था, नमाज़ के बीच में ऐसा मर्ज़ पैदा हो गया कि अरकान के अदा करने के क़ाबिल नहीं रहा तो जिस तरह हो सके बैठ कर लेट कर नमाज़ पूरी करे दोबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं।
  • बैठ कर रुकू व सुजूद से नमाज़ पढ़ रहा था नमाज़ पढ़ते ही में क़ियाम के क़ाबिल हो गया तो बाक़ी नमाज़ खड़ा होकर पढ़े और इशारे से पढ़ रहा था और नमाज़ ही में रुकू व सुजूद करने के क़ाबिल हो गया तो दोबारा पढ़े।
  • जुनून या बेहोशी में अगर पूरे छः वक़्त निकल गये तो इन नमाज़ों की क़ज़ा भी नहीं। इस से कम हो तो क़ज़ा वाजिब है।
  • अगर बेहोशी/बेअक़्ली शराब या भांग पीने की वजह से है चाहे दवा के तौर पर तो क़ज़ा वाजिब है चाहे बेहोशी/बेअक़्ली कितने ही ज़्यादा ज़माने तक हो। इसी तरह अगर दूसरे ने मजबूर कर के शराब पिला दी जब भी क़ज़ा वाजिब है।
  • सोता रहा जिस की वजह से नमाज़ जाती रही तो क़ज़ा फ़र्ज़ है चाहे नींद में पूरे छः वक़्त गुज़र जायें।
  • अगर यह हालत हो कि रोज़ा रखता है तो खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता और न रखे तो खड़े होकर पढ़ सकेगा तो रोज़ा रखे और नमाज़ बैठ कर पढ़े।
  • मरीज़ के नीचे नापाक बिस्तर है और हालत यह हो कि बदला भी जाए तो नमाज़ पढ़ते-पढ़ते फिर नापाक हो जाएगा तो उसी पर नमाज़ पढ़े। और अगर जल्दी नापाक नहीं भी हो मगर बदलने में उसे ज़्यादा तकलीफ़ होगी तो उसी नापाक बिस्तर पर ही नमाज़ पढ़ ले।

बीमार सख्स कब नमाज़ छोड़ सकता है?

मस्ला:- बीमार जब सर से भी इशारा ना कर सके तो नमाज़ साकित है इसकी जरुरत नहीं के आँख या भू या दिल के इशारा से पढ़े फिर अगर 6 वक्त उसी हालत में गुज़र गयी तो इनकी कज़ा भी नहीं है- फुदिया की भी हाजत नहीं और अगर ऐसे हालत के 6 वक्त से कम गुज़रे तो सेहत के बाद कज़ा फ़र्ज़ है चाहे उतनी ही सेहत हुई के सर के इशारे से पढ़ सके.

मस्ला:- जिस बीमार का ये हाल हो गया की रकअतो और सिज्दो की गितनी याद नहीं रख सकता तो इस पर नमाज़ अदा करना जरुरी नहीं.

मसला:- सब फ़र्ज़ नमाजो में और वित्र और दोनों ईद की नमाज़ में और फज़र की सुन्नत में कयाम फ़र्ज़ है- अगर बिना मतलब के ये नमाज़े बैठ कर पढ़ेगा तो नमाज़ नहीं होगा.

मस्ला:- कयाम चूंके फ़र्ज़ है इस लिए बिना मतलब के तर्क ना किया जाए वर्ना नमाज़ ना होगी- यहा तक के अगर असा या खादिम या दीवार पर टेक लगाकर खड़ा हो सकता है तो फ़र्ज़ है के उसी तरह खड़ा होकर पढ़े बलके अगर कुछ देर भी खड़ा हो सकता है के अल्लाह हुअक्बर कह ले तो फ़र्ज़ है के नमाज़ खड़े होकर शुरू करे फिर बैठ कर पूरी करे वर्ना नमाज़ ना होगी- जरा सा बुखार या सर दर्द , जुखाम या इस तरह की मामूली खाफिफ तकलीफ जिन में लोग चलते फिरते रहते है- हरगिज़ उज़र नहीं- ऐसी मामूली तकलीफों में जो नमाज़े बैठ कर पढ़ी जाए वर्ना नहीं होगा इनकी कज़ा लाजिम है.

मस्ला:- जिस सख्स को खड़े होने से कतरा आता है या ज़ख्म बहता है और बैठने से नहीं बहता है तो उसे फ़र्ज़ है के बैठ कर पढ़े जब के और तरीका से उसकी रोक ना कर सके.

मस्ला:- इतना कमजोर है के मिस्जिद में जमाअत के लिए जाने के बाद खड़े होकर नहीं पढ़ सकेगा और घर में पढ़े तो खड़ा होकर पढ़ सकता है तो घर ही में पढ़े जमाअत घर में कर सके जमाअत से वर्ना तनहा.

मस्ला:- बीमार अगर खड़ा होकर नमाज़ पढ़े तो करायत बिलकुल ना कर सकेगा तो बैठ कर पढ़े लेकिन अगर खड़ा होकर कुछ भी पढ़ सकता है तो फ़र्ज़ है के जितनी देर खड़े खड़े पढ़ सकता है उतनी देर खड़े खड़े पढ़े बाकि बैठ कर पढ़े.

मस्ला:- मरीज़ के निचे नजिस पोछना बिछा है और हालत ये है के बदला भी जाए तो पढ़ते पढ़ते फिर नापाक हो जाएगा तो उसी पर नमाज़ पढ़े युही अगर बदला जाए तो इस कदर जल्दी नजिस तो ना होगा मगर बदलने में मरीज़ को सख्त तकलीफ होगी तो उसी नजिस ही पर पढ़ ले.

मस्ला:- पानी में डूब रहा है अगर उस वक्त भी बगैर अमल कसीरा इशारा से पढ़ सकता है मस्ला- तैराक है या लकड़ी वगैरा का सहारा पा जाए तो नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है वर्ना मअजुर है के बच जाए तो कज़ा पढ़े.

Conclusion – Bimar ki Namaz ka Tarika

मुझे उम्मीद है की आप सभी को Bimar ki Namaz Padhne ka Tarika समझ में आया होगा इसके मुताल्लिक कोई सवाल है तो निचे कमेंट करे.

1 thought on “Bimar ki Namaz ka Tarika | कुर्सी पर नमाज़”

  1. Chal sakta. Megar gotna more ker sijda jameen per nahi kersakta hai.to kursi me bhaitker ker eshary se roko sijda ker sakta hai?

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